तन्हाई की एक शाम हो तुम,
प्याले का छलकता जाम हो तुम,
कैसे बताऊँ तुम क्या हो मेरे लिए,
कभी न भूल पाऊँ वो नाम हो तुम।
बीते लम्हों की कहानी हो तुम,
पल-पल मौजों की रवानी हो तुम,
कैसे बताऊँ तुम क्या हो मेरे लिए,
निःस्वार्थ प्रेम की निशानी हो तुम।
नदियों की कल-कल करती गीत हो तुम,
मोतियों की माला को जोड़ती प्रीत हो तुम,
कैसे बताऊँ तुम क्या हो मेरे लिए,
जो रिश्तों को संवारती वो रीत हो तुम ।
चेहरे की प्यारी मुस्कान हो तुम,
मेरी जिन्दगी की शान हो तुम,
कैसे बताऊँ तुम क्या हो मेरे लिए,
पत्थरों पे लिखी रख का फरमान हो तुम,
चाँदनी से सजी रात हो तुम,
मेरे दिल में छिपी जज़्बात हो तुम,
कैसे बताऊँ तुम क्या हो मेरे लिए,
भूल से भी न भूलूँ वो बात हो तुम।
🖊️सुभाष कुमार यादव