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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

मटक-मटक के ना चलो -वेदव्यास मिश्र

मटक-मटक के ना चलो,
मचल-मचल के ना चलो ।
तुम ही ज़रा बता दो,
कैसे सँभालू खुद को।

दिल पहले से है घायल,
अब और ना बनाओ।
जीना हुआ है मुश्किल,
कैसे बचाऊँ खुद को।

अब और ना मचलना,
ऐसे कभी ना चलना।
दिल आ रहा है बाहर,
मेरा उछल-उछल के।
यूँ ज़ुल्फ ना लहराओ,
मिलता है क्या बता दो।

----वेदव्यास मिश्र


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सर्वाधिकार अधीन है


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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (2)

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अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

सुप्रभात श्रीमान सुबह-सुबह यह प्यारी सी रचना पढ़ने को मिली प्रेम रस ने आनंदित कर दिया सुप्रभात नमन

वेदव्यास मिश्र said

हमारा सौभाग्य है बन्धु कि हमारी रचना को आपकी पारखी नज़रों का प्यार भरा एप्रुवल मिला ..सुप्रभात हृदयस्पर्श आभार नमन 🙏🙏

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