बात तुम उसूलों की करते हो।
अपने पे आयी तो मुकरते हो।।1।।
ये तो अमाल गलत है तुम्हारा।
तुम सबको ही धोखा देते हो।।2।।
हम में लड़ने की कुव्वत नहीं।
इसका फायदा तुम उठा लेते हो।।3।।
होगा महशर में हिसाब सारा।
गुनाह कर के जो यूं हंसते हो।।4।।
मजबूरी है इनकी उधारी की।
गुलामो जैसे जिन्हें रखते हो।।5।।
तरस खाओ अब गरीबों पर।
गर जरा इंसानियत रखते हो।।6।।
फरियाद किससे करें ये सब।
खुदा तुम भी तो ना देखते हो।।7।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ