मैंने चेहरा नहीं छुपाया,
न वो थकान, जो रात-भर रोने के बाद भी नहीं गई।
न वो आँखें,
जिनमें अब भी उम्मीद की एक जिद्दी सी रेखा बची है।
मैं जैसी दिखती हूँ — वैसी ही हूँ।
ये होंठ — जो कभी दहकते थे प्रेम में,
अब चुप हैं,
पर उनकी खामोशी में
एक पूरी किताब सिसकती है।
मैंने खुद को सजाया नहीं,
केवल सँभाला है,
जैसे माँ आँचल से बच्चे का मुँह पोंछती है —
धीरे, गहराई से,
बिना शोर किए।
मैं जैसी दिखती हूँ — वैसी ही हूँ।
ये त्वचा,
जिस पर समय ने अपने हस्ताक्षर छोड़ दिए हैं —
कभी प्रेम से,
कभी पीड़ा से।
ये मेरी किताब का पहला पृष्ठ है —
जिसे कोई भी पढ़ सकता है
अगर उसके पास दर्द समझने की आँख हो।
मैं अपने कंधों पर
किसी और की अपेक्षाओं का बोझ नहीं ढोती अब।
मेरी गर्दन अब सीधी है —
क्योंकि मैंने झुकने से इनकार किया है।
मैं जैसी दिखती हूँ — वैसी ही हूँ।
न कोई ‘फिल्टर’
न कोई ‘कवच’।
केवल मैं —
अपने सबसे ईमानदार रूप में।
अगर यह सुंदरता नहीं,
तो कुछ भी सुंदर नहीं,
“मैं जैसी दिखती हूँ — वैसी ही हूँ,
क्योंकि अब मैं बनना नहीं चाहती —
मैं बस होना चाहती हूँ।
पूरी। अधूरी।
सच।”


The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra
The Flower of Word by Vedvyas Mishra







