सपनों को दूँगा मैं अपने उड़ान,
मुझको भी मिलेगा देखो सम्मान,
मेरा भी है यह खुला आसमान,
मैं भी हूँ किसी की जान,
सपनों पर हक है सब का समान,
ऊंचाइयों से डरने में नहीं है शान,
मंजिल को पाना नहीं है आसान,
हौसलों से भर लो ऊंँची उड़ान,
पिंजरे का पंछी बनाना है तुझको,
या फिर चाहिए ये खुला आसमान,
यह सब तेरे हाथ में बंदे,
तुझसे ही मिलेगी तुझको पहचान,
शिखर पर यदि जाना है तुझको,
तो घर छोड़ निकलना होगा,
रास्ते में मिलेंगे अंधेरे बहुत,
चीर कर उन्हें रोशनी की ओर आगे तुझे निकलना होगा,
तु रुकना नहीं तु थकना नहीं,
मंजिल तेरी बस अब करीब है,
मिलेगा तुझे जो चाहता है तू,
तेरी मेहनत में यदि जुनून है,
अब यदि पीछे हटा तो तेरा परिश्रम धूल है,
आगे ही बढ़ते रहना,
इन फिजाओं में खिला तु इकलौता मकबूल है।
लेखक-रितेश गोयल 'बेसुध'