मां के बिना अब हर दिन एक सा होता ,
मां के बिना अब कहां कोई त्यौहार होता।
मां थी तो त्यौहार पर बड़ा मज़ा आता था
नज़ारा ये बड़ा प्यारा होता था,
मां के बिना अब वो मज़ा, वो नज़ारा कहां।
मां के बिना है घर सुना - सुना,
मां के बिना है आंगन उखड़ा - उखड़ा।
मां थी तो घर सजा संवरा रहता था,
मां के बिना तो अब घर खंडहर सा लगता।
मां के बिना अब स्वादिष्ट भोजन कहां,
मां के बिना अब तरह - तरह के पकवान कहां।
मां थी तो अपने हाथों से बड़े प्यार से खाना
खिलाती थी,
मां के बिना अब वो लाड़ प्यार, उनके हाथों सा स्वाद,
वो खुशबू पकवानों में कहां।
मां के बिना अब चैन की नींद कहां,
मां के बिना अब वो सुकून कहां।
मां थी तो लोरी गाकर सुला देती थी,
मां के बिना अब नींद का आगमन कहां।
✍️ रीना कुमारी प्रजापत ✍️
सर्वाधिकार अधीन है

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




