इस जहाँ में सांसों का, एहसान लिए फिरते हैं..
दबे हुए से जाने कितने, अरमान लिए फिरते हैं..।
हम हर वक्त ढ़लते रहे, ज़माने के मुताबिक मगर..
वो मेरे ख़िलाफ़, नुक्स–ए–बयान लिए फिरते हैं..।
माना अपनी तारीफ़ पर, वो निगाह झुका लेते हैं..
मगर दिल में फिर भी,हज़ार गुमान लिए फिरते हैं..।
जाने किसकी वज़ह से, मौज़ू है ये शहर-ए-ख़ूबाँ..
हम बेवज़ह क्यूं सर पर, आसमान लिए फिरते हैं..।
ये हयात है, जाने किसकी मिल्कियत "क्षितिज"..
फिर भी हम तो मोहर-ए-फ़रमान लिए फिरते है..।
इस कदर शोरो–गुल है, कि कुछ भी सुनता नहीं..
सब अपने दिल में दिल की दास्तान लिए फिरते हैं..।
हमारी सूरत तो वहीं है, मगर कोई पहचानता नहीं..
वो हज़ार पर्दे अपनी आंखों के दरमियान लिए फिरते हैं..

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




