जो बिना कुछ कहे तुम्हारी हरेक इशारों को समझ जाती थी।
जो दर्द में भी तुम्हारे लिए हंसती थी।
तुम सोते थे तो सोती थी तुम जागते थे तो जगती थी।
जिसने अपनी ज़वानी की कितनी हसीन पलों को तुम्हारे लिए कुर्बान कर दीए।
तुम्हारे लिए अपने मां बाप पति सामाज सबसे लड़ लिए।
पर बदले में तूने क्या दिए
सिर्फ भय भूख लाचारी
क्या ख़ूब है तुम्हारी अदाकारी।
तुम बचपन में एक एक शब्द को लाखों बार दोहराते थे और मां बड़े नाज़ों से उसका ज़बाब देती थी पर आज़
वह बूढ़ी क्या हो गई एक शब्द दो बार दोहरा दिए तो तुमने हज़ार बात सुना दिए..
तुम्हें गोद में लेकर रात रात भर बिजली चले जाने के बाद पंखे झेलती थी।
लोरियां सुनाती थी।
पर आज़ थोड़ी बीमार क्या हुई
इसकी सुनने वाला कोई नहीं ।
उसकी सुधी लेना वाला कोई नहीं।
वाह! साहब आज साहब बन ख़ुद पर इतना इठलाते हो,
तुम्हारी मां हीं तुम्हारी पहली टीचर थी तुम क्या ये नहीं जानते हो।
जो तुम्हारी एक आह पर दौड़ी चली आती थी।
जिस हाल में होती थी उसी हाल में फौरन चली आती थी।
पर आज़ घर में ढेरों ऐसों आराम नौकर चाकर भरे पड़े हैं पर मां के लिए
वही सीढ़ी वाला घर
बिखरे पड़े कबाड़ इधर उधर।
मत भूलो है ये जिंदगी का चक्र
आज़ उधर तो कल इधर
तुम्हारी भी औलादें तुम्हें देख रहीं हैं।
तुम जो आज़ कर रहे हो ठीक वही रिटर्न गिफ्ट अपनी औलादों से पाओगे।
फिर तुम अपने किए पर यार बहुत पछताओगे।
तब तुम ढूंढोगे अपने मां बाप को
फिर तब तुम उनको ना पाओगे।
अपने किए पर बहुत पछताओगे..
इसलिए कहता है आनंद
चाहें बूढ़े हों या लाचार बीमार
अपने मां बाप का सदा सम्मान करो ।
खुद के हीं जीवन को संवारने के लिए
यार शुरू ये काम आज से हीं करो।
मां बाप का सम्मान करो।
बदले में अपने हीं तनायों से
की के लिए सम्मान पाओ।
इसलिए कहता है आनंद बार बार कि..
मां बाप का सम्मान करो ...
भैया मां बाप का ज़रूर सम्मान करो..
मां बाप का ज़रूर सम्मान करो..

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




