कभी धूप में, कभी छाँव में,
बचपन बीता अपने गाँव में।
सोंधी महक उठी बरसात से,
मन तैरा कागज की नाव में।
गाँव, गली, घरबार सब छूटे,
जब खड़ा हुआ अपने पाँव में।
आज सब याद आते हैं एकैक,
पैसा है, सुकूँ नहीं भटकाव में।
🖊️सुभाष कुमार यादव
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जब खड़ा हुआ अपने पाँव में।
आज सब याद आते हैं एकैक,
पैसा है, सुकूँ नहीं भटकाव में।
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