हसीनाओ ! रचनाकारों की सुनो ,
चाँद कभी हिरनी तो कभी झीलो,
स्वर्ग अप्सरा उपमाओ की सुनो ,
हसीनाओ! रचनाकारो की सुनो ll
एसएमएस इनके तुम पढो ,
इन्हें कभी ना इग्नोर करो l
छोड़े अधूरे जो तुमने उनको ,
ये सबको दिन रात सुनायेl
श्रृंगारो में सुनो , हाश्य मे सुनो ,
देखो न इग्नोर करो बात सुनो l
भावना से उत्प्लावित बेचारे हैं ,
बरस रहे हैं बीहड़ में भी l
इनको तो कहने की लत ,
तुमको ना सुनने की लत l
अभिव्यक्ति सुख से ना दूर करो ,
अपने इन माशूको को सुनो l
तुमतो इनसे बोर हो जाती ,
फिर ये है सबको सुनते l
कर्म तुम्हारे इनके बिगडे ,
जनता इनसे है पक जाती l
रातो उल्झे केश तुम्हारे ,
गहरी काली आँखों में उलझे l
अधरो मे ये भीगे भीगे ,
सुन्दर सुन्दर गीत बनाये l
जबरन सबको फिर ये सुनाए ,
कहीं तो ताली कहीं पे गाली ,
गली गली चौराहे में गाए l
अब समझो इनकी पीड़ाये,
हसीनाओ ! इन कवियो को सुनो l