गुमनाम आशिक ने अदब से तबियत लिख दी l
मानों जाते - जाते अपनी वसीयत लिख दी l
जिस मोहब्बत का गुरूर था उसे एक अरसे से,
वजह क्या थी उसने 'मरहूम मोहब्बत' लिख दीl
जी के... जीते जी न मिलेगा सुकूँ दुनियां में,
बात ऐसी लिखी के मानों आफत लिख दी l
उस जहर पर ऐतबार किसी को भला कैसे हो,
जहर...तेज जहर के एवज में मोहब्बत लिख दी l
दुनियां देख के दुनियां ने.. दुनियां को बुरा कह डाला,
ये दुनियां ही है जिसने दुनियां पर तोहमत लिख दी l
सुकूँ की तलाश में भटकते परिंदो के लिए,
लफ्ज तमाम लिखे और अंत में फुरसत लिख दी l
प्रीत दिल से लगा और दिमाग़ भी लगा,
ये बात लिखी मानों हसरत लिख दी l
सीने की आग में जलने न दिया जिस मेहमां को,
उसी ने अपनी डायरी में इस बात को झंझट लिख दी l
अधर मौन और हाथों को दिया पूर्ण विराम,
आख़री शब्द में कागज़ पर रुख़सत लिख दी l
-सिद्धार्थ गोरखपुरी