ज़िंदगी छांव ना देती मुझे
धूप में वो चलाती मुझे....
एक पल ठहर जाऊ,
राहत भरी एक नींद पाऊं
पर....पल पल वो जलाती मुझे
हंसकर झूम लू, गाकर सुन लूं
मस्ती से जी लूं, आसमां को छू लूँ
ऊर्जा उमंग से जहां में जी लूं
पर... नफरत की ईर्षा से जलाती मुझे
फकत थोड़ी चाहत से जी लूँ
साहिल सी मांगें छोड़ लूँ
मुंह मोड़कर चले उसे माफ़ कर लूँ
पर.. शैतान बड़ी दर्द की तपन से मारे मुझे
ज़िंदगी छांव ना देती मुझे....