कालचक्र का फेर
शिवानी जैन एडवोकेटbyss
देखो तो कैसे बहती है, यह समय की अविरल धारा,
पल में पुराना होता सब कुछ, पल में सब कुछ है नयारा।
जो कल थे अटूट बंधन, आज डोरियाँ हैं ढीली सी,
जो कल थे गहरे अपने, आज दिखते कुछ अजनबी से।
हालातों की तो बात ही क्या, रंग बदलते हैं हर पल,
कभी धूप सुनहरी खिलती, कभी छा जाता है बादल।
जो शिखर थे कभी ऊँचे, ढलानों में बदलते हैं,
जो राहें थीं सीधी कल तक, आज मोड़ों से गुजरते हैं।
और हम? हम भी तो इस चक्र में, नित बदलते आकार हैं,
विचार नए, अनुभव नए, सपनों का भी विस्तार है।
कल की जो दृढ़ मान्यताएँ, आज लगती हैं कुछ कच्ची सी,
सीखते हैं हर पल कुछ नया, मिटती है पहचान पिछली सी।
यह समय ही तो सिखाता है, परिवर्तन का स्वीकार करना,
जो बीत गया सो बीत गया, भविष्य का आकार भरना।

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




