किससे पूछूँ - प्रिय मैं तुम्हारा पता
किससे पूछूँ, प्रिय मैं तुम्हारा पता,
रात-दिन ढूँढ़ती हूँ तुम्हें हर जगह।
मेरा दिल ही तो था घर आपका,
मुद्दतों से तुम अब इसमें रहते नहीं।
चाँद तुम बन गये हो — ये कहते नहीं,
चाँद को जब मैं देखूँ तो कहते हैं लोग,
“चाँद पर अब तुम्हारा हक ही नहीं।”
जो तुम्हारा था, वो खो गया है कहीं।
किससे पूछूँ, प्रिय मैं तुम्हारा पता।
तुम हवाओं में हो, तुम फ़िज़ाओं में हो,
मेरी साँसों में हर पल महकते हो तुम,
मेरी यादों में हर पल रहते हो तुम।
मेरा दिल ही तो है, प्रिय, घर आपका।
किससे पूछूँ, प्रिय मैं तुम्हारा पता...
-सरिता पाठक

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




