स्वेद से तर-तर होकर,
खेतों में हल चलाता है।
चीर सीना इस वसुधा का,
अन्न वही उगाता है।
होता है शोषण इसी का,
श्रम का है उचित मोल नहीं।
सहता है सरलता से सब कुछ,
फिर भी पाता कुछ बोल नहीं।
जिसको भी मिला अवसर जब-जब,
सबने मिलकर इसको लूटा है।
वादाखिलाफी होती है इससे,
यूँ ही किसान नहीं टूटा है।
जिसने हैं सबका पेट भरा,
वो हैं आज चौराहे पर खड़ा।
अनुशासन और कर्तव्य पालन में,
है ही नहीं कोई इससे भी बड़ा।
प्रचंड धूप ,बारिश को सहकर,
जिसने किया निरंतर काम।
कर्ज रूपी बोझ से दबकर,
करने लगा अपना काम तमाम।
हिमांशू कुमार सिंह
[तालिबपुर, बलिया]
[उत्तर प्रदेश]


The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra
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