हास्य-व्यंग्य
खाली हाथ
डॉ.एच सी विपिन कुमार जैन "विख्यात"
चलो चलें, उस अंतिम यात्रा में,
जहाँ धन का घमंड हो धूल की मात्रा में।
भ्रष्टाचारी का जनाज़ा जब उठेगा,
कितना सोना, कितना चांदी वो लेगा?
बड़ी-बड़ी कोठियाँ, महंगी कारें,
महल-अटारियाँ, सजे-धजे द्वारे।
सब यहीं छूट जाएंगे, मिट्टी में मिलेंगे,
सारे नोट, सारे सिक्के, यहीं रहेंगे।
उसकी तिजोरी, भरी हुई अकड़ से,
देखेंगे सब, वो जाएगी किस मकड़ से?
कफ़न में जेबें तो होती नहीं,
बैंक बैलेंस की बात क्यों करनी?
रिश्वत का पैसा, टैक्स की चोरी,
सब धरी रह जाएगी ये अधूरी।
खाली हाथ आया था, खाली जाएगा,
ये सत्य हर कोई क्यों भूल जाएगा?
मालूम हो सके सबको ये राज,
कितना ले गया वो, अपनी दौलत का ताज।