कोई मुझे अपना भी कहता है
और वो मुझसे झूठ भी बोलता है,
मैं नाराज़ रहूं उससे या जिंदगी से,
जो मेरा अपना है वहीं बेगाना सा लगता है...।
वो वाक़िफ है मेरे रग-रग से,
फिर भी समझता नहीं,
ज़रा सा सवाल क्या कर दो,
रूठ जाता है मुझसे,
ज़रा ये बता दो मुझे,
अपना से पराया कब बन गई मैं,
बिन मौसम पानी क्यों बरसता है...।
थोड़े नादान हैं हम,
समझदारी नहीं सीखी हमने,
पर तुमने जो समझदारी सीखा है,
वही सीखा दो मुझे भी,
शिकायत कर दो उससे,
जो लोग जानते हैं मुझे,
सवाल तो पूछ लेंगे मुझसे,
पर आजकल शब्दों के भावों को कौन समझता है...।
कोई मुझे अपना भी कहता है
और वो मुझसे झूठ भी बोलता है...।।
- सुप्रिया साहू