दिनभर की भागदौड़, मीटिंग्स की मार,
कंधों पे बोझ, आँखों में खुमार।
जब लौटता हूँ थका-हारा सा मैं,
दरवाज़े पे मिलती हो तुम मुस्कान लिए।
ना कोई शब्द, ना सवालों की भीड़,
बस तुम्हारा हाथ, और चाय की प्याली फीकी-सी मीठी।
हर घूंट में घुली होती हो तुम,
सिर्फ़ चाय नहीं… वो पल होते हैं सुकून के बेहद कम।
वो अदरक की खुशबू, वो तुलसी की छुअन,
जैसे हर थकावट को कर दे अनकही दवा बन।
कभी नाराज़गी में भी वो स्वाद बदल जाता है,
लगता है तुम्हारा मन भी चाय में घुल जाता है।
ऑफिस की फाइलें, बॉस के ताने,
सब रह जाते हैं बाहर उस दरवाज़े के आने।
क्योंकि घर की सबसे कीमती चीज़,
तुम्हारी बनाई चाय है... और वो दो पल की शांति।
तुम्हारे हाथों की वो प्याली,
जैसे हर दिन की थकान पर मरहम रख दे।
न शोर, न दिखावा,
बस तुम्हारा होना… और वो चाय… सब कुछ कह दे।
कभी तुम नाराज़ होती हो,
तो चीनी थोड़ी कम लगती है,
पर उस कम मिठास में भी
तुम्हारे जज़्बातों की गर्मी चुपचाप छलकती है।
कभी पूछती हो – "बहुत थक गए ना?"
और मैं मुस्कुराकर चाय उठा लेता हूँ,
क्योंकि उस सवाल में ही
सारा प्यार, सारा ख्याल घुला होता है।
तुम्हारी बनाई चाय कोई ड्रिंक नहीं,
वो एक एहसास है – जो हर दिन
मेरे टूटते हुए धैर्य को फिर से जोड़ देता है।
कभी सुकून, कभी शिकायत…
पर हर बार वही अपनापन ले आता है।
कई बार सोचता हूँ,
इतनी सी चाय में इतना सुकून कैसे समा जाता है?
शायद तुम्हारा स्पर्श,
या वो ख़ामोशी में छुपी फ़िक्र हर घूंट में उतर आता है।
दुनिया कहती है —
थकान दूर करने को कॉफी बेहतर होती है,
पर मैं उन्हें क्या बताऊँ,
मेरी राहत तो तुम्हारी चाय में ही बसती है।
तुम्हारी बनाई चाय सिर्फ़ एक पेय नहीं,
वो हमारी कहानी का हिस्सा है,
हर दिन की नई शुरुआत,
और हर शाम का सुखद अंत है।
कभी अगर ज़िंदगी थक जाए,
तो बस एक बात याद रखना—
चाय बना देना…
ताकि मैं फिर से जी सकूँ… तुम्हारे साथ… हर शाम।

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




