कविता - मेरे सीने पर....
मेरे साथ बोलती थी
मेरे साथ रहती थी
सातों जन्म मैं तो
तुम्हारी हूं कहती थी
मगर आज किसी के
साथ जा रही
मुझे नजर लगा कर
मुस्कुरा रही
ये कौन सा घुसा
उतार रही ?
तड़पा तड़पा कर
क्यों मुझे मार रही ?
इस से अच्छा
मेरा प्राण ही लेती
मेरे सीने पर
गोली से उड़ा देती
मेरे सीने पर
गोली से उड़ा देती.......