तुमसे बिछड़ने का कोई इरादा न था,
पाने की चाहत थी, कोई वादा न था।
तुम्हें लगता है तुम सब कुछ थी मेरी,
थोड़ी मुहब्बत थी कुछ ज्यादा न था।
तुमने हर्फ़ ढूँढ़े, मैंने लिखे थे अहसास,
किताब का एक भी पन्ना सादा न था।
अच्छा खेल लेती हो इश्क़ का शतरंज,
पाला वज़ीर से पड़ा, कोई प्यादा न था।
इश्क़ करना, तो अपनी शर्तों पे करना,
दिल के सल्तनत में कोई कायदा न था।
🖊️सुभाष कुमार यादव