नफरती शोलाें से
तबाह सारा मंज़र है।
धार्मिक उन्माद का
उठ रहा खंजर है।
ये आग और कितनी
फैलेगी।
देश की फिजाओं में
अब और कितना
ज़हर घुलेगी।
अब आदमी आदमी
से डर रहा।
आपसी मतभेद में
लड़ रहा।
शायद देश का दुश्मन
यही चाहता है।
और हमारे इस देश का
एक तबका भी बस यही
चाहता है।
क्या से क्या बना डाला है
इस सोने की चिड़िया को
धर्मनिरपेक्ष इस गुडिया को।
यहां बारूद पे बैठी सारी
दुनियां है।
एक धमाके में उड़ गया
परिवार देखो ..
अब अंधेरों में सिसक रही
बेचारी मुनिया है।
कैसे बदल रहीं ये जो
आज़ाद भारत की पल
पल तस्वीर है।
अंधेरों की तरफ क्यूं बढ़ रही
भारत की तक़दीर है।
क्या यहीं आजाद भारत की
तासीर है।
पल पल बंध रही ज़ंजीर है..
पल पल बंध रही ज़ंजीर है...