ज़माने ने सीखा दिया मुझको सँभलना।
जीने की चाह बढ़ी ख्वाहिशों का सपना।।
बिन सोचे ही मिल गया फरिश्ता मुझको।
उसी की क्षत्रछाया ने सिखाया सँभलना।।
कभी खुशी के कभी गम के साथ-साथ।
चहुमुंखी विकास की अंतर-तरंग उठना।।
जिन्दगी की किताब उसके बिन अधूरी।
बच्चे की तरह सिखाया चलना-फिरना।।
हर पन्ने पर लिखती गई कहानी अपनी।
भिन्न-भिन्न रंग 'उपदेश' सीखा बिखेरना।।
उसके मुस्कान की रोशनी बढ़ती जा रही।
मेरी मुस्कान के खातिर जारी हाथ फेरना।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद