जन्म जन्म की प्यास कभी बुझ पाई।
शून्य में समाई अदृश्य बनकर आई।।
जब खुद को खुद ने आजाद किया।
फिर जीने की तमन्ना किधर से आई।।
और कितना नजरअन्दाज करता मैं।
ख्वाहिशो को बेहिसाब लेकर आई।।
अब खामोशी से काम चलता नही।
लफ्जो की हरकत 'उपदेश' ले आई।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद