"ग़ज़ल"
फूलों से जो न पा सका वो काॅंटों से मिला है!
इस दिल में जो ख़लिश है मोहब्बत का सिला है!!
उन दोनों के है दरमियाॅं संग-दिल ये ज़माना!
इधर मजनूॅं की झोपड़ी उधर लैला का क़िला है!!
रेगिस्तान को सींचा है मैं ने अपने लहू से!
तपते हुए सहरा में देखो फूल खिला है!!
मेरी फ़रियाद से फट गया पत्थर का कलेजा!
मेरी आहों से रब-उल-इज़्ज़त का अर्श हिला है!!
रहे 'परवेज़' की दुआ से सितमगर तू सलामत!
अब तुम से कोई शिकवा है मुझे और न गिला है!!
- आलम-ए-ग़ज़ल परवेज़ अहमद
© Parvez Ahmad

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




