उसकी आंखों में क्षमा दया
उसकी कर्मों में तप त्याग मनोबल है।
वह अबला नहीं सम्पूर्ण संबल है।
है वह नारी सब पे भारी
है वह काली तो कभी खिलता कंवल है।
है वह जगतजननी
जीवनतारणी उससे हीं संपूर्ण कहानी है।
वह निर्झर पवन ऊर्जा
वह जीवन संवाहनी है ।
है वह स्वप्न सुंदरी कभी तो कभी
दुष्ट दलन महिषासुर मर्दनी है।
हे नारी तू सबसे प्यारी
तेरी कर्ज़दार ये दुनियां सारी है।
तुझसे ही ये दुनियां सुंदर
ये जीवन सुहाना
हर परवाना दीवाना है।
तू हीं खुशी
तू हीं हंसी
तुझ बिन कुछ भी ना हासिल है।
समझता है मर्द अपने आप को
सबसे बड़ा काबिल...
पर वास्तव में नारी से बहुत छोटा है,
टूटा किस्मत और हाथ में फूटा लोटा है।
है वह नारी की जिसकी संसर्ग में आकर
जिसका स्पर्श पाकर पुरुष असल में मर्द
बनता है ...और..
किस्मत की बंद तले खोलता है।
जीवन की हरेक सुख पाता है।
फिर उसी नारी पर मर्दानगी
दिखता है।
जीवन की अपनी हताशा निराशा को
उसपे उतरता है।
फिरभी वह ना उफ करती है।
अन्तिम सांस तक बन सावित्री
अपनी पति पूरे परिवार के लिए
दिन रात गलती है।
है वह नारी वह सबकुछ सहती है।
मुंह से कुछ ना बोलती है।
हे नारी तू नारायणी है
हे मां बहन बेटी मेरे देश की...
तू हीं गीता रामायण है कामायनी ...
तू हीं गीता रामायण है कामायनी.....