उस बार जो आई बैसाखी
हृदयों में रोष की ज्वाला थी
अन्याय पे फिर आवाज़ें उठी
अब और नहीं अब और नहीं
अपनी ज़मीन अपना गगन
बाहरवाले क्यों करे दमन
हर गली गली ये बात चली
अब और नहीं अब और नहीं
सब मिल जुलकर ये करे विचार
कैसे हो ख़त्म ये अत्याचार
दशहतगर्दी हो बंद अभी
अब और नहीं अब और नहीं
कुछ पल में दुनिया बदल गई
नफ़रत जीवन को निगल गयी
क्या जाने कैसे ज़ुल्म सहा
ये हुआ वहीं हां हुआ वहीं
बंदूकें उठी और यूं बरसी
गरजी गोलियां, झपटी लपकी
फिर खून की नदियां बहने लगी
ये हुआ वहीं हां हुआ वहीं
इस ओर कराहते घायल जन
कहीं गिरे छलनी होते बदन
लाशों के ढेर में दबी जमीन
ये हुआ वहीं हां हुआ वहीं
एक शतक गुजर गया फिर भी
घाव हमारे ताज़ा है
काले दिन का काला सच
करते आपस में साझा है
है प्यार अगर इस मिट्टी से
हो लाल अगर इस धरती के
अन्तिम नमन देकर आओ
सजदा करो शीश झुकाओ
देखो और जानो आज़ादी
पाने को क्या क्या जतन किये
स्वछन्द हवा आजाद फिजा
लेने को क्या क्या मोल दिये
याद उन मतवालों की
दिल में सदा रहे बनी
याद करो फिर याद करो
पावन जलियाँ की सरज़मीं
चित्रा बिष्ट

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




