पढ़े लिखे,
ये जाहिल हैं।
बेकसूर लोगों को,
ठगते हैं झूठ बोलकर।
आंखों का पानी,
सूख चुका है।
मुखिया बनकर,
खून चूस रहा।
जांचों को बदले,
नोट कमा रहा।
भगवान पर से,
विश्वास उठ चुका।
इसलिए मुखिया,
शैतान की गोद में बैठ।
पाप और पुण्य के,
भेद को।
जानबूझकर,
अट्टहास लगा रहा।
मगर ये क्या,
मासूम की जान पर बन आई।
मुखिया के घर,
पहुंचे लोग, धैर्य रखो मेरे भाई।
रास्ते में लोग,
कहते जा रहे थे।
हाय किसकी लग गई ऐ!"विख्यात,
बेचारा नसीब का मारा।
शहर पूरा छान लिया,
एक लकड़ी भी नहीं मिल रही।