इस शहर ने मुझे देखा नहीं — बस गुज़र गया,
मैं कौन थी, कहाँ थी, ये सवाल बिखर गया।
मैं इक अजनबी सी थी अपने ही नाम में,
तेरा ज़िक्र आया, तो मेरा वजूद डर गया।
दीवारें थीं, आँखें नहीं — बस इमारतें,
जिसे देखना था, वही सबसे पहले मर गया।
मैं चीख़ती रही अपने ही मौन में,
शहर हँस पड़ा — और सब कुछ ठहर गया।