जब आई थी घर की देहरी पर,
पवन गा रही थी स्वागत गीत।
हर फूल ने जैसे वचन दिया,
सजेगा अब जीवन का संगीत।
पर मिली उसे वो जर्जर दीवारें,
जहाँ सपने चूर-चूर हुए।
हर कोने में धुआँ-धुआँ आहें,
जहाँ रिश्तों के अर्थ अधूरे हुए।
आँगन में गूँजते अपमान के स्वर,
चूल्हे की आँच में जलते दिन।
आसमान भी जैसे झुका सा लगता,
सूरज बुझा, रातें गुमसुम।
जिसने वादा किया था सात जन्मों का,
वही क्यों मूक खड़ा देखता रहा?
क्या प्यार का अर्थ बस सहना,
और मन का हर दर्द छुपाना रहा?
दहेज के सौदे, रिश्तों की बोली,
हर दिन सम्मान का खोना था।
वह जननी, सृजन की देवी कहलाई,
फिर क्यों उसे मिट्टी सा होना था?
पवन ने जैसे कानों में फुसफुसाया,
“तेरी आग अब राख न बने।
तेरे आँसू अब धार बने,
तेरी चुप्पी का तूफान जगे।”
सागर की लहरें गुस्सा दिखा रहीं,
चाँदनी भी धुंधली हो चली।
पेड़ों के झुके हुए सिर पूछते,
“क्यों तूने यह अपमान सह लिया?”
अब यह धरती भी झुक जाएगी,
अब यह आसमान भी काँपेगा।
तेरे भीतर की ज्वाला उठेगी,
अब हर अन्याय मिटेगा।
तुम अब वह धरा बनोगी,
जहाँ सिर्फ सम्मान खिलेगा।
तुम अब वह जलधार बनोगी,
जो हर बंधन को तोड़ेगा।
तेरे आँसू अब अमृत बनेंगे,
हर दर्द तेरी शक्ति बनेगा।
तू नारी है, शक्ति का स्वरूप,
तू अपने संघर्ष का सूर्य उगाएगी।
-इक़बाल सिंह “राशा“
मनिफिट, जमशेदपुर, झारखण्ड


The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra
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