मृत्यु
कभी तलवार नहीं होती,
न ही किसी अंधेरे का दानव।
वह तो माँ की गोद है,
जहाँ थकी हुई आत्मा
धीरे-धीरे आँखें मूँद लेती है।
वह
एक लोरी की तरह है,
जो हृदय की धड़कनों को
धीरे-धीरे
शांत कर देती है।
उसकी गोद में
न कोई भय, न कोई पीड़ा,
बस शांति का गहन समंदर है।
मृत्यु
कभी दरवाज़ा नहीं बंद करती,
वह तो एक खिड़की खोलती है—
जहाँ से आत्मा
पिंजरे से मुक्त पंछी बनकर
अनंत आकाश में उड़ जाती है।
उसके हाथों में
एक चाँदनी की चादर होती है,
जिससे वह जीवन की थकान
ढक देती है।
उसकी उँगलियों से
हवा का संगीत बहता है,
और आत्मा उसमें
धीरे-धीरे विलीन हो जाती है।
कभी वह
गंगा की धारा जैसी है,
जो सब बंधनों को धोकर
सिर्फ़ मौन छोड़ जाती है।
कभी वह
रात के आँगन में फैली
एक उजली चुप्पी है,
जिसमें आत्मा
अपने असली घर लौट जाती है।
मृत्यु
अंत नहीं है,
वह तो अंतिम कविता है,
जहाँ शब्द मौन बन जाते हैं,
और मौन—
ईश्वर की साँस।
इक़बाल सिंह “राशा”
मनिफिट, जमशेदपुर, झारखण्ड

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




