जब लहरें मेरी देहरी तक आईं,
मैंने कोई मंत्र नहीं पढ़ा।
मैंने बस उनकी आँखों में देखा—
जहाँ मेरी परछाईं
काँच की किरचों-सी
टूटती और काँपती रही।
छत की कड़ियाँ बह गईं,
मिट्टी के खिलौने घुल गए,
और पिता की रखी हुई घंटी
गहरे अँधियारे में सो गई।
पर मैं मौन रहा—
क्योंकि मेरे भीतर
हर बार एक अदृश्य लकड़ी
चटक कर बिखर जाती है,
और कोई अनसुना शब्द
पानी की तहों में डूब जाता है।
रात उतरती है
तो मैं एक बिखरी लौ
किसी ऊँचे बाँस पर बाँध देता हूँ,
कि मेरी साँसों की गवाही
धारा के पार
किसी अजनबी तक पहुँच सके।
फिर मैं खड़ा रहता हूँ—
लहरों के सामने,
लहरों की तरफ़,
लहरों के ख़िलाफ़।
मैं जानता हूँ
पानी मेरी स्मृतियाँ निगल जाएगा,
मेरे बर्तन, मेरे गीत,
यहाँ तक कि मेरे आने वाले सपने भी।
पर मेरी आँखें
अब भी किसी अनलिखे इतिहास की तरह
जल रही हैं—
जैसे समय की राख में
बची रह गई हो
एक अंतिम मशाल।
हर बार जब धारा लौटती है,
मेरे भीतर से कुछ टूटकर गिरता है—
जैसे किसी वीरान कुएँ में
बिना आहट के
एक तारा झर जाए।
-इक़बाल सिंह “राशा”
मनिफिट, जमशेदपुर, झारखण्ड

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



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