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कविता की खुँटी

                    

बासंती दोहे - डॉ अलका गुप्ता 'प्रियदर्शिनी'

Feb 25, 2024 | कविताएं - शायरी - ग़ज़ल | लिखन्तु - ऑफिसियल  |  👁 41,095

चकोर चातक चंद्रमा, सरसों सरसे पीत।
पिहू पिहू पपिहा रटे, कोयल कुहुके गीत ।।

आम्र तरू पर बौर है भ्रमर करें गुंजार।
तितली मनमुग्धा भई फूलन देख बहार।।

महुआ महके पेड़ पर, खिल पलाश अंगार।
कामदेव रति देखकर, प्रीत करे श्रृंगार।।

खेतन तट अलसी खड़ी, चना खड़ा है बीच।
गेहूं बालि सुहावनी, नहीं जरूरत सींच।।

पिया बिना सिसकी भरें, ऋतु बसंत ना भाय।
पुरवाई आंगन बहे, तन मन झुलसा जाय।।

बिदा ठंड अब हो रही युवा दिवाकर होय
धीरे-धीरे पवन भी शीतलता रहि खोय।।

मौसम हुआ सुहावना चहुं दिशि चढ़ा खुमार।
हरित चुनरिया ओढ़कर अवनि हुई तैयार।।

पछुआई थिरकन लगी बांधी मन ने आस।
खुशबू से आहट मिली महकत पिया सुवास।।

खड़के कुंडी द्वार पर खोलूं झपट किवाड़।
आलिंगनमय प्रीत के लग मधुमासा ठाड़।।

करती अलका स्वागतम बासंती ऋतुराज।
जन जन साक्षर हो सुखी खुशियों पर हो राज।।


कवियित्री - डॉ अलका गुप्ता 'प्रियदर्शिनी'




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (1)

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वेदव्यास मिश्र said

महुआ महके पेड़ पर, खिल पलाश अंगार। कामदेव रति देखकर, प्रीत करे श्रृंगार।। खेतन तट अलसी खड़ी, चना खड़ा है बीच। गेहूं बालि सुहावनी, नहीं जरूरत सींच..बहुत ही प्यारी खूबसूरत रचना 👌👌💝💝👌👌

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