मनोदशा क्या है मेरी
ये तुम क्या जानो।
समझ में आ जाएगा
सबकुछ.....
एक बार तो तुम अपना
मानों।
वरना शकों सूबा की ये
गुंजाइशें ...
यूहीं बनीं रहेंगी
दूर दूर तो रहते हीं हो
ये गलतफहमियां ना कभी कम
होंगी।
पढ़ लो मेरी दिल की आयत
कयामत से पहले
वरना सुपुर्दे ख़ाक के बाद
कुछ भी ना हासिल होंगें।
फिर वहीं रुसवाईयां तन्हाइयां
बेइंतहां कुरबत के दिन रात होंगें।
ढूंढोगे तुम तब नीशंl मेरी
ऐ मेरी रहगूजर....
फिर ना तुम्हें हम मिलेंगे..
फिर ना तुम्हें हम मिलेंगे...