व्यथा बनी अब पीड़ा उपजी ,
देखो ऐसे तुम मत टूटो l
हे !जननी के नयन के तारे ,
देखो तुम पथ से मत विचलो l
तेरे कंधो पे भार शक्ति का ,
बंधु मेरे मत आशा तोड़ो l
देख दशा ये प्रांत पुकारे ,
बंधु मेरे तुम इसको तज दो l
लानत तेरी भरी जवानी ,
जो इसपे तू आज लुटा रहा l
अपनी संस्कृति गौरव शाली ,
इसको तू क्या देख दे रहा है l
करुणा कलित विन्ध्य क्षेत्र को ,
दुषित कर्मों की सौगात दे रहा l
सपनों अपनों की आँखों के ,
नशे में आकर तोड़ दिया तू l
हीरा उपजा ये धरती है ,
इसमें कैसे कलुष है उपजे l
हे धरा के राजहंस तुम ,
सोकर के अब तक न जागे l
युवा शक्ति दृढ़ संकल्पित हो ,
एक बार जय घोस लगादो l
अपनी पावन इस धरती से ,
दुषित ये अभिशाप हटादो l
काल चक्र का पहिया घूमे ,
माता का आंचल ये मांगे l
उसके आँचल से लालन तुम ,
उसका छोटा लाल ना छीनो l
धारा को एक नई दिशा दो ,
उर्जा निज को केन्द्रित करलो l
ऐसे चमको मा के तारे ,
धरा विंध्य की उज्ज्वल करदो l
आओ फिर हम कदम बढाये ,
नशा मुक्त अभियान चलाये l
जहर घुली इन पूर्वा बयर में ,
चुन चुन कर हम दूर हटाये l
युवा जोश को साथ जगाये ,
विंध्य क्षेत्र का क्लेश मिटाये l
आओ हम मिल कदम बढाये l
तेजप्रकाश पाण्डेय लिखित ✍️✍️✍️एक कदम जागृति की तरफ