गुमान न करना
उम्र के पड़ाव भी क्या खूब हैं
बढ़ती हुई उम्र हर गुमान तोड़ती जाती है
कद पर नाज़ किया तो कमर झुका दी
मान हुआ सुन्दरता पर तो झुर्रियाँ बना दी
ज़ुल्फ़ों की खूबसूरती को
बुढ़ापे की चाँदनी ने ढक दिया
परिवार पर गर्व किया तो
परिवार के भी आगे परिवार बन गए
और संबंध अब दूर के हो गए
अहम् किया धन का तो
उम्र के आख़िरी पड़ाव ने जता दिया
कि अब धन नहीं वक़्त चाहिए
वक़्त पर विश्वास किया
पर वक़्त तो कभी किसी का हुआ नहीं
यही है हर एक इंसान की कहानी
फिर भी अपने ‘मैं’ से दूर नहीं रह पाता..
----वन्दना सूद