जाने किन ख्यालों में रहता खोया वो,
लगता है कईं बरसों से नहीं सोया वो।
आवारा समझते थे सब लोग जिसको,
बोझ जिंदगी भर चुपचाप ही ढोया वो।
जनाज़ा निकाल के अपनी खुशियों का,
तन्हा श्मशान में फुट-फुट के रोया वो।
चलते-चलते लहूलुहान हो गए जब पैर,
काँटे सारे उठा बीज फूलों के बोया वो।
किसी को बता के अपना गम क्या करे,
ग़ज़ल में लफ़्ज़ आँसुओं के पिरोया वो।
🖊️सुभाष कुमार यादव