दर्द देखकर ज़िन्दगी के मौत की ख्वाहिश होने लगी,
मैं खुश था गम में तो खुशियों में साज़िश होने लगी।
मुझे मेरे हालातों ने, भीतर तक कुछ ऐसे तोड़ दिया,
की अब तो खुद अपने आप से मुझे रंजिश होने लगी।
तपता रेगिस्तान प्यास की तड़प से तड़पता मर गया,
इधर हरे- भरे इलाकों में ज़बरदस्त बारिश होने लगी।
माँ की दुआओं का असर है कि दूर रहीं हैं सारी बलाएँ,
कुछ न हुआ बलाओं से, खुदा से गुज़ारिश होने लगी।
🖊️सुभाष कुमार यादव