बात निकलेगी जहाँ इश्क़ की गहराई की,
याद आएगी फ़क़त मेरे ही शैदाई की।
मुस्कुराते हुए होंटों ने क़सम दी है हमें,
हम बयां कैसे करें आह को तन्हाई की।
घर की सीलन ने सलामत नहीं छोड़ा उसको,
एक तस्वीर थी जो तुझसे शनासाई की।
रौशनी रोज़ नयी देती रही ज़ख्मों को,
हाय क्या बात है इस दिल की मसीहाई की।
जिसका होना भी न होने के बराबर ही था,
उम्र भर मैंने उसी इश्क़ की भरपाई की।
मैंने जब देख ली सूरत पे तेरी हंसती बहार,
मेरी आँखों को ज़रूरत नहीं बीनाई की।
उसकी आहट पे फ़रिश्तों का गुमां होता था,
जिसने हर सम्त मेरे दर्द की रुस्वाई की।
मेरी आंखों मे उतर आये कई माह-ओ-नुजूम,
ग़म ने जब दिल में मेरे अंजुमन आराई की।
"हीर" बस इश्क़ पे आयी न कभी आंच कोई,
धज्जियाँ उड़ती रहीं दहर में दानाई की।
ममता राजपूत 'हीर'
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The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra
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