जब भी मुझे वो दूर जाने को कहते हैं
मेरी आँख से आँसू नहीं, लहू बहते हैं।
मेरी धड़कन, साँस, ज़िंदगी हो तुम ही,
जुदा हो के देखना आशिक कैसे मरते हैं।
मेरे जिस्म से तो रूह ही निकल गयी,
वो कैसे जिंदा हैं जो बिछड़ के रहते हैं।
जिस्म में लगे जख्म, सब भर जाते हैं,
दिल के चोट का क्या? वो कहाँ भरते हैं।
मैं तो लिख के मन हल्का कर लेता हूँ,
जो कह नहीं पाते वो कैसे दर्द सहते हैं।
🖊️सुभाष कुमार यादव