बेचना चाहता बहुत कुछ अपना कहकर।
संगत सही न मिल सकी हवा में बहकर।।
आमदनी से ज्यादा खर्च मुकम्मल भूल है।
जाने क्या क्या चाहता वह सपना कहकर।।
गर्म रखेगा कब तलक रिश्ता किराये का।
भूगोल बदलेगा 'उपदेश' जमाना कहकर।।
New रचनाकारों के अनुरोध पर डुप्लीकेट रचना को हटाने के लिए डैशबोर्ड में अनपब्लिश एवं पब्लिश बटन के साथ साथ रचना में त्रुटि सुधार करने के लिए रचना को एडिट करने का फीचर जोड़ा गया है|
पटल में सुधार सम्बंधित आपके विचार सादर आमंत्रित हैं, आपके विचार पटल को सहजता पूर्ण उपयोगिता में सार्थक होते हैं|
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गर्म रखेगा कब तलक रिश्ता किराये का।
भूगोल बदलेगा 'उपदेश' जमाना कहकर।।