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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra The Flower of WordThe novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayara By Reena Kumari Prajapat

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The novel 'Nevla' (The Mongoose), written by Vedvyas Mishra, presents a fierce character—Mangus Mama (Uncle Mongoose)—to highlight that the root cause of crime lies in the lack of willpower to properly uphold moral, judicial, and political systems...The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

                    

ध्यान पर मेरे प्रयोग

Aug 26, 2025 | अध्यात्म जगत | Devender Kumar  |  👁 4,515

एक दिन अचानक मेरे मन में विचार आया कि यदि मैं ध्यान साधना में मन में उठ रहे विचारों को देखने की कोशिश करता हूँ, या कभी-कभी साँसों पर ध्यान एकत्रित करता हूँ, या कभी-कभी शून्य में उतरने की कोशिश में निर्विचार होने का प्रयास करता हूँ, तो क्यों न किसी मंत्र पर ध्यान एकत्रित करने की कोशिश करूँ? अब मेरे सामने प्रश्न था कि कौन सा मंत्र चुनूँ? यूं तो बचपन से मैंने दुर्गा सप्तशती को पढ़ा है और उसमें कई मंत्रों व श्लोकों को कंठस्थ भी किया है। दुर्गा कवच, अर्गला स्तोत्र, और कीलक स्तोत्र मुझे पूरी तरह कंठस्थ हैं, लेकिन मैंने फिर भी ऐसा मंत्र चुनना चाहा जो बिल्कुल सरल हो और नियमों से ज्यादा बंधा न हो। मेरे मन में भगवान शिव का मंत्र "ॐ नमः शिवाय" का विचार आया।यह मेरे लिए एक प्रयोग था। आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में, जहाँ नियमों का पालन करना मुश्किल है, जहाँ परंपरागत विचारों में शुद्धता का ध्यान रखना होता है, लेकिन मेरे विचार में आज के माहौल में शुद्धता को बनाए रखना भी कठिन है। मैंने शिव मंत्र पर ध्यान लगाना शुरू किया। कुछ देर ध्यान में बैठकर, फिर चलते-फिरते, खेतों में काम करते-करते, जहाँ भी बैठता, उसी मंत्र पर ध्यान लगाना शुरू कर देता। अब रात को बिस्तर पर लेटे-लेटे भी ध्यान लगाने लगा। अभी तक मैं किसी मंदिर में ध्यान लगाने नहीं गया, न ही किसी संत या साधु के पास गया। कई बार खेतों में एकांत में ध्यान लगाने की कोशिश करता, या किसी ऊँचे स्थान पर बैठकर उसी मंत्र पर ध्यान लगाने का प्रयास करता। इस तरह ध्यान करते-करते मुझे लगभग छह वर्ष बीत गए, लेकिन मैंने ध्यान लगाना जारी रखा।एक दिन की बात है, घरवालों ने मुझे काम सौंपा कि खेतों में काटी गई झाड़ियों को जलाना है। मैं उस कार्य को करने चला गया। काफी झाड़ियाँ जला दीं और मन को मंत्र पर लगाने का प्रयास जारी रखा। फिर एक जगह, बहुत कोशिश के बाद भी एक झाड़ी में आग नहीं लग रही थी। तभी मन में विचार आया कि शायद इसके नीचे कोई जीव हो, जिसे भगवान बचाना चाहते हों। मैंने झाड़ी उठाकर देखा तो उसके नीचे कुछ अंडे थे। उस झाड़ी को जलाने में लगभग पूरी माचिस खर्च हो गई, मगर आग नहीं लगी। इससे मेरे मन में एक विश्वास सा जागा कि मंत्र का कोई प्रभाव तो है। यह ध्यान ही था, जिसने मेरे विचार को यह मार्ग दिखाया कि झाड़ियों के नीचे कुछ हो सकता है। मेरा विश्वास था कि यदि मंत्र में वास्तव में शक्ति है, तो कुछ न कुछ होगा—या तो गलत होगा या ठीक, या तो ध्यान लगेगा या नहीं। लेकिन धीरे-धीरे मैंने महसूस किया कि मेरे व्यवहार में परिवर्तन आ रहा है, ध्यान सध रहा है।फिर एक दिन मैं अपने एक पड़ोसी के साथ एक देवता के मंदिर गया। वह मंदिर में साफ-सफाई करने लगा, और मैं ध्यान करने की कोशिश करने लगा। मेरा ध्यान इतना गहरा हो गया कि उसने मुझे उठाने की कोशिश की, मगर मेरा ध्यान भंग नहीं हुआ। फिर उसने मुझे उठाकर बाहर लाने की कोशिश की, लेकिन मुझे लगा कि शायद वह डर गया। इसलिए मैं ध्यान से लौट आया। उसने हैरानी से पूछा, "क्या हो गया था? तुम क्यों नहीं उठ रहे थे?" अब मैं कभी भी एक घंटे तक बैठकर मंत्र पर ध्यान लगा सकता था।सावन के महीने की बात है, मैं कुछ परेशान था। अपने आँगन में घूम रहा था और परेशान करने वाले विचारों से मुक्ति के लिए फिर से शिव मंत्र पर ध्यान लगा रहा था। परेशानी इतनी बड़ी थी कि मन बार-बार उसी की ओर भाग रहा था। तभी एक अजीब सा एहसास हुआ, जैसे मेरी जीभ उठकर तालू से लग गई। फिर एक स्वाद महसूस हुआ, जो सांसारिक पदार्थों का तो नहीं हो सकता था। मैं हैरान हो गया और अपने घर के उस कमरे में, जहाँ देवी-देवताओं की पूजा होती है, बैठ गया। उसके बाद जब सब सामान्य हो गया, तो मैं सोचने लगा कि यह क्या था? फिर इंटरनेट पर खोजा तो पता चला कि यह एक रस था, जिसे योगी वर्षों तक तपस्या और कुछ योगिक क्रियाएँ करके प्राप्त करते हैं। मगर मैंने तो कुछ भी नहीं किया था—केवल एक मंत्र का जाप किया। मैं न तो किसी तीर्थ यात्रा पर गया, न ही कोई विशेष क्रिया की। बस यह जानना चाहता था कि मंत्र पर ध्यान लगेगा या नहीं।






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