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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

महा कुम्भ

कुंभ मेला हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जो हर 12 वर्षों में आयोजित एवं 6वे बर्ष में यह मेला अर्द्ध कुंभ तथा प्रत्येक 12वें वर्ष में महाकुंभ के रुप में अलग-अलग स्थानों पर आयोजित किया जाता है:


1. हरिद्वार (उत्तराखंड)
2. इलाहाबाद (उत्तर प्रदेश)
3. उज्जैन (मध्य प्रदेश)
4. नासिक (महाराष्ट्र)

कुंभ मेले का महत्व:


कुंभ मेला हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जो आध्यात्मिक और धार्मिक महत्व के लिए आयोजित किया जाता है। इस मेले में लाखों लोग आते हैं और गंगा नदी में स्नान करते हैं, जो हिंदू धर्म में एक पवित्र नदी मानी जाती है।


कुंभ मेले की उत्पत्ति:


कुंभ मेले की उत्पत्ति पौराणिक कथाओं में वर्णित है। कहा जाता है कि जब देवताओं और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया था, तो उसमें से अमृत कलश निकला था। उस कलश को लेकर देवता और असुर लड़ने लगे, जिसमें कलश की कुछ बूंदें पृथ्वी पर गिर गईं। उन बूंदों के गिरने के स्थानों पर कुंभ मेला आयोजित किया जाता है।


कुंभ मेला एक महत्वपूर्ण त्योहार है जो हिंदू धर्म की आध्यात्मिक और धार्मिक परंपराओं को प्रदर्शित करता है।
यह मेला पौष पूर्णिमा के दिन आरंभ होता है और मकर संक्रान्ति इसका विशेष ज्योतिषीय पर्व होता है, जब सूर्य और चन्द्रमा, वृश्चिक राशि में और वृहस्पति, मेष राशि में प्रवेश करते हैं। मकर संक्रान्ति के होने वाले इस योग को "कुम्भ स्नान-योग" कहते हैं और इस दिन को विशेष मंगलकारी माना जाता है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इस दिन पृथ्वी से उच्च लोकों के द्वार इस दिन खुलते हैं और इस प्रकार इस दिन स्नान करने से आत्मा को उच्च लोकों की प्राप्ति सहजता से हो जाती है। यहाँ स्नान करना साक्षात् स्वर्ग दर्शन माना जाता है

'कुम्भ' का शाब्दिक अर्थ “घड़ा, सुराही, बर्तन” है। यह वैदिक ग्रन्थों में पाया जाता है। इसका अर्थ, अक्सर पानी के विषय में या पौराणिक कथाओं में अमरता (अमृत) के बारे में बताया जाता है
पौराणिक विश्वास जो कुछ भी हो, ज्योतिषियों के अनुसार कुम्भ का असाधारण महत्व बृहस्पति के कुम्भ राशि में प्रवेश तथा सूर्य के मेष राशि में प्रवेश के साथ जुड़ा है। ग्रहों की स्थिति हरिद्वार से बहती गंगा के किनारे पर स्थित हर की पौड़ी स्थान पर गंगा जल को औषधिकृत करती है तथा उन दिनों यह अमृतमय हो जाती है। यही कारण है ‍कि अपनी अन्तरात्मा की शुद्धि हेतु पवित्र स्नान करने लाखों श्रद्धालु यहाँ आते हैं। आध्यात्मिक दृष्टि से अर्ध कुम्भ के काल में ग्रहों की स्थिति एकाग्रता तथा ध्यान साधना के लिए उत्कृष्ट होती है।हालाँकि सभी हिन्दू त्योहार समान श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाए जाते है, पर यहाँ अर्ध कुम्भ तथा कुम्भ मेले के लिए आने वाले पर्यटकों की संख्या सबसे अधिक होती है।
(स्रोत धार्मिक पुस्तकें)
✍️#अर्पिता पांडेय




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (1)

+

Lekhram Yadav said

आदरणीय अर्पिता जी, आपके इस महत्वपूर्ण ज्ञान से आत्मा तृप्त हुई और ऐसा लगा कि कुम्भ मेले में जाना चाहिए, वर्ष 2001 में मैं एक महिने इलाहाबाद में महा कुम्भ में कर्तव्य पालन करने का सुअवसर प्राप्त हुआ था, उसके बाद मैं चाहकर भी नहीं जा पाया। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद एवं सादर नमस्कार।

Arpita pandey replied

नमस्कार सर जी ठंड मे कुछ कमी हो तो जरूर हो आइएगा हरिद्वार के अर्द्ध कुंभ में मैं तो गयी हूं पर इस बार महाकुंभ में भी जाने का प्रयास करुंगी

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