रुतबे की हवाओं में रूप पतझड़ सा समाया।
बादलों के बवंडर ने एक इन्द्रधनुष भला पाया।।
शरारत रंगमिजाजी धुल गई उदासी के आँसू से।
मोहब्बत की दास्ताँ को समझौते में ढला पाया।।
भ्रमित मन की परछाई किसे अपना समझ बैठी।
घटनाएँ घट रही हर रोज तन्हाई का सिला पाया।।
नदी मन की घड़ी प्यासी वक्त बहलाए जा रहा।
स्वाद चखा 'उपदेश' मानवता का तो सुला पाया।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद