दर्द, इतना दे कि दीवाना हो जाऊँ,
मैं अपनी खुशी से बेगाना हो जाऊँ।
है मालूम अंजाम शमा की चाह का,
जलूँ इश्क़ में और परवाना हो जाऊँ।
अभी वक्त है खिलाफ, थाम के रख,
मिट्टी हूँ, मिट्टी से ख़ज़ाना हो जाऊँ।
कर दो अल्फ़ाज़ों में कुछ यूँ जादूगरी,
गुमनाम हो के एक फ़साना हो जाऊँ।
भुला दे जहाँ दीवाने दर्द-ओ-गम सारे,
दिल कर रहा, वो मयखाना हो जाऊँ।
🖊️सुभाष कुमार यादव