तुम्हें क्या पता इसका अन्जाम।
काबू में रहने दो रहने दो जाम।।
तफ़रीह करो उसके माहिर तुम।
करी आज की शाम तुम्हारे नाम।।
आँखो को मिलाना फितरत मेरी।
शरारत करने का तुम्हारा काम।।
थक-हार कर सो जायेगे दोनों।
दावत सा दिखाई देता इंतजाम।।
मिलन नसीब में तुमने लिख दिया।
तुम्हारे पास होने का नशा इनाम।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद