कापीराइट गजल
इक राज अंधेरों से यह छुपाया हमने
दीये की जगह दिल को जलाया हमने
हुनर बातें बदलने का न आया हमको
हर बात को सादगी से ही छुपाया हमने
बदनाम करके मिलती है खुशी जमाने को
हर बात से फिर खुद को बचाया हमने
होते हैं कांटे जिन फूलों के साथ- साथ
उन्हीं फूलों से घर अपना सजाया हमने
लुटाए हैं कई हमने यह प्यार के दरिया
जमाने की नफरत से दिल लगाया हमने
उजालों में नहीं बसती ये दिल की दुनियां
अंधेरों से फिर ये दिल यूं सजाया हमने
जल उठते हैं ये चिराग रौशनी के वहां
ये आशियां जिस जगह पे बनाया हमने
ये जमाना हमसे है हम जमाने से नहीं
दिल में एहसास ये फिर से जगाया हमने
- लेखराम यादव
( मौलिक रचना )
सर्वाधिकार अधीन है