आनंदित कोलहित है,
मौसम भी लालायित है,
महके महके हैं कुसुम,सुमन,
उपवन कितना महक रहा,
ये गगन में उड़ते खग देखे?
चह -चह से कितना चहक रहा,
कुछ लता पता भी बिखरी हैं,
कुछ दूब उगी है हरी भरी,
कुछ तरह तरह की नयी नयी,
छोटी घासें भी हैं निकली,
आंधी का सा मौसम है या,
बारिस है आने वाली,
उस अनंत आसमां में,
सूरज ने घोली कैसी लाली।
-अशोक कुमार पचौरी
(जिला एवं शहर अलीगढ से)
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