जब भी सूर लगाती हूँ, लगता है ये मेरी आवाज़ नहीं
देते न अपना लय मुझे आप गुरुजी, तो होता मुझसे रियाज़ नहीं
मेरी सारी सूझ-बूझ की दौलत, आपके हीं तो बदौलत है
तानपुरे को झंकृत करते आपके सदृश, हाँथ तो मेरे हैं मगर अंदाज़ नहीं
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