सारा सफ़र बारिश में कटा, प्यास तो फिर भी रही,
नदियाँ मिली, सागर मिले, फिर तुम क्यों नहीं मिले ?
हर मोड़ पर कई चेहरे मिले, तुम क्यों नहीं मिले,
राहों ने बार बार कहा यही, तुम क्यों नहीं मिले ?
ख़ामोश रात ने मुझमें गज़ल की किताब खोल दी,
हर शब्द पर सिसक उठी सदी, तुम क्यों नहीं मिले ?
मंजर बदल गए, शहर बदल गए, राहें नई मिलीं,
मुझसे क़िस्मत रही भी पूछती, तुम क्यों नहीं मिले ?
जो ख़त लिखे न जा सके, लफ़्ज़ आधे रह गए,
दराज़ में तह हुई दुआ अभी, तुम क्यों नहीं मिले ?
पत्थर के इस नगर में पत्थर दिल ही लोग मिले,
खिड़कियाँ भी रही पूछती , तुम क्यों नहीं मिले ?
सवेरा तो रोज़ देता रहा नई उम्मीद की दस्तकें,
शामें वही सवाल कर रही, तुम क्यों नहीं मिले ?
मेले थे, भीड़ थी बहुत, मगर था कौन अपना,
तन्हा थीं दिल की बस्तियाँ , तुम क्यों नहीं मिले ?
‘छगन’ ने तेरी तलाश को तो रीत ही समझ लिया
तुमसे ही कह न सका कभी, तुम क्यों नहीं मिले ?
-छगन शेखावत जेरठी

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




