मेरी अखियाँ अब न सोती रातों को,
....कुछ कहती और रोती रातों को,
देश का अब में कर्ज़ चुका दूं,
देश का अब में कर्ज़ चुका दूं,
....हर पल ये कहती रातों को,
....हर पल ये कहती रातों को,
खून की हर एक बूँद ऋणी है,
....जीवन की हर सांस ऋणी है,(2)
मन करता अब खुद को मिटा दूं,
....देश का अब मैं कर्ज चुका दूं (2)
अहसानों से कुछ दबा इस कदर,
....उठ ना सकू की ये फ़र्ज़ चूका दूं,
देश का अब मैं कर्ज चुका दूं,
....देश का अब मैं कर्ज चुका दूं,
कवि राजू वर्मा........ द्वारा लिखित
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